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रविवार, 13 सितंबर 2020
हिन्दी ! तू फिर भी हिन्दी है।
रविवार, 30 अगस्त 2020
मंगलमय यह देश कहां मिलने वाला !
मंगलमय यह देश कहां मिलने वाला !
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शुचि , दान ,धर्म-सत्कर्म सार का , श्रेय लिए जीवन स्तम्भ ;
क्षमा, दया, धृति ,त्याग ज्ञेय , निष्कंटक ! नहीं कुटिल दंभ !
विद्वता , बल-विक्रम का सिन्धु अपार, सर्वत्र सार ज्ञेय है –
दीपित विधेय जग-जीवन प्रवाह में , रहा अजेय-दुर्जेय है।
पुण्य रश्मियां , शुभ्र संस्कृति, वैदिक स्वर सींचित विहान ;
धवल-धार, मूर्तिमनोरम , हे जन्मभूमि, श्रद्धावनत् प्रणाम !
सुधन्य प्रवीर , हे धर्मप्राण ! हे तपोभूमि के पुण्यधाम ;
सप्तसिन्धु सभ्यता के, उदात्त दर्शन , तूझे प्रणाम !
आज पग-पग पर खण्डित धर्म-धार , सर्वत्र दाह के दु:सह स्वर ;
बड़ी विकट है कालखण्ड , खण्डित भूमण्डल प्रहर-प्रहर !
नदी नाले सिसक रहे , पर्वत-मिट्टी-रेत- पठार ;
सिसक रहे हैं आत्मभाव , न्याय, अहिंस्र, सत्य धार !
भू से खण्डित शैल-शिखर से , सरिता से सागर से ;
घीरे जड़ताओं से , आक्रांताओं से , आच्छादित आहत स्वर से ।
खण्डित सत्कर्म सधर्म प्रखर , शील स्नेह अंतरण से ;
संस्कृति टूट रही द्वीपांतर से , खण्डित नभश्चरण से !
हे धन्य वीर ! यह प्रबल प्रताप, अग्निस्फुलिंग जिला दे ;
मंगलमय यह पुण्य प्रकल्प, भारत को भव्य बना दे ।
अग्नि की लपटें कराल हों , दुर्धर्ष नृत्य रचा दे ;
आक्रांताओं को कर स्तम्भित , धवल-धार रचा दे ।
भू के मानचित्र पर अंकित , सब तिमिर रोष हटाकर ;
विस्तृत विशाल नेत्रों को – भू-नभ तक फैलाकर ।
शत्रु दल में हा-हाकार मचे , पुरा घोष शांति का उठे स्वर ;
धर्म दीप हों सुदीप्त प्रखर , सुदीप्त सनातन भारत भास्वर ।
मंगलमय यह देश धीर ! पुनः कहां मिलने वाला ;
शुभ्र संस्कृतियों पर क्रूर आक्षेप को , कौन यहां सहनेवाला ?
यही सोचकर वीर बलिदानी ! बार-बार मरना होगा ;
स्वाभिमानी स्तम्भों पर , आघात् नहीं सहना होगा ।
✍🏻 आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’
काशी ! तू अविरल अविनाशी है ।
काशी ! तू अविरल अविनाशी है।
काशी ! तू अविरल अविनाशी है !
काशी, तू अविरल अविनाशी है।
काशी ! तू अविरल अविनाशी है।
काशी ! तू अविरल अविनाशी है।
रविवार, 29 मार्च 2020
मानव निर्मित वायरस और विश्व
है...कोई उत्तर........!
वस्तुत: विश्व के कोने कोने में जीवों की आहें, करुण पुकार, असह्य वेदना भरी चीत्कार एवं पृथ्वी के मर्मांतक अन्त:स्थल में उन्मादियों द्वारा प्रतिक्षण की जाने वाली भयंकर चोटों में सन्निहित है। सन्निहित है प्रकृति के साथ क्रूरता भरी भयानक लूट के हर उस कुकर्म में ...!
आज अचानक क्या हो गया ...
विश्व धरातल पर सम्पूर्ण विश्व को कितने बार विध्वंसित कर देने की क्षमता रखने वाले तथाकथित महाशक्तिशाली देश दुबके हुए से क्यों हैं ! आखिर औकात में कैसे आ गये !
उस काल को नमस्कार है !
यद्यपि आक्रांताओं द्वारा आच्छादित, सम्पूर्ण विश्व को आहत कर देने वाली यह #चायनीज_वायरस मानव निर्मित एक प्रयोग है। प्रकृति के विरुद्ध होने का परिणाम क्या होता है , समस्त विश्व के सामने परिलक्षित है। सम्पूर्ण विश्व LOCKDOWN की स्थिति में है। प्रकृति को हम संजोए होते तो आज हम इस प्रकार असहाय हो घरों में बन्द नहीं होते ,,, प्रकृति समस्त विष कणिकाओं को अब तक त्वरित शमन कर गयी होती ! आर्थिक महाशक्ति बनने की होड़ में न जाने कितने देशों की अर्थव्यवस्थाएं दम तोड़ देंगी। लोग अनायास भूखों मरने लगेंगे , जितना की यह #CHINESE_VIRUS नहीं मार पायेगा।
चीन में कम्यूनिस्टों का शासन यह चाहता था कि विश्व में तानाशाह के रूप में ख्यापित होने का एकमात्र विकल्प छद्म जैविक युद्ध (BIOLOGICAL WAR) ही है।
परिणामत: इस दुष्ट कुकर्मी कुटिल देश नें अपने लैब में वर्षों से कई कृत्रिम जैविक वायरसों का विनिर्माण, प्रयोग एवं परीक्षण का सूत्रपात करता रहा ।
इसका एक ही कुटिलाकांक्षा था कि समस्त विश्व किसी तरह मेरे अधीन रहे , तानाशाह के रूप में हम ख्यापित हो सकें।
इसका एक ही लक्ष्य है , असंख्य समृद्ध मानवों की तड़पती निरीह लाशों पर महाशक्ति बनना ! विश्व की अर्थव्यवस्था को खोखला कर अपने नियंत्रण में लेना ।
आज इसके कुकर्मों के कारण ही सम्पूर्ण मानवता एवं विश्व की अर्थव्यवस्था LOCKDOWN की स्थिति में है।
स्पेन को 3500 करोड़ डॉलर का चिकित्सकीय उत्पाद देना यह एक ज्वलंत उदाहरण है। आगे भी यही प्रयोग और भयानक रूप में होने वाला है।
पर भारत !
चीर संस्कृतियों की विशालता का दृढ़ स्तम्भ !
वर्षों से संवहित महान सभ्यता का जीवंत स्वरुप !
प्रत्येक बयारों को सह लेगा । इसकी विलक्षण संस्कृतियां विषमय अणु-परमाणु के असंख्य अदृश्य कणों एवं अदृश्य वायरसों को दग्ध कर मटियामेट करने की अद्भुत क्षमता रखती है। इसके कण कण में शंकर हैं। कोई भी संक्रमित #Second_Particle
के आक्रमण का कोई औकात ही नहीं है।
पर रुकिये ...!
अपने धरातल को झांकिए । क्या आप अध्यात्मिक, भौतिक, दार्शनिक एवं व्यवहारिक धरातल पर प्रकृति को विशुद्ध संतुलित दृढ़ एवं सशक्त रख पाए हैं ।
आपने पश्चिम की चकाचौंध में अपने प्राकृतिक संसाधनों को बड़ी निर्ममता के साथ दोहन करके खोखला कर दिया है ।
पृथ्वी...पानी... प्रकाश...
पवन... आकाश...!
क्या सुरक्षित रखा है आपने ?
नहीं...न...!
मैं आपको निराशा के निकृष्ट गर्त में नहीं धकेलना चाहता !
डंके की चोट पर सचेत अवश्य करना चाहता हूं ,
अपने धरातल को पखारिए ...
विशुद्धता को प्रकटित कर प्राणीमात्र को अभय दीजिए।
भक्ष्य-अभक्ष्य पर विचार करें।
जरा सोचिए !
क्या आपकी इतनी क्षमता नहीं रही की एक मानव निर्मित विषाणु से टकरा सके !
कहां गए वो ज्ञान-विज्ञान के संधान !
उत्तिष्ठ भारत !
प्रकृति की ओर लौटो ,
पुरातन काल का आह्वान करो !
आपको LOCKDOWN नहीं होना पड़ेगा।
ब्रह्माण्ड का कोई भी वायरस आपको स्पर्श तक नहीं कर पायेगा । विश्वास न हो तो अपने ज्ञान को पुष्ट कीजिए , प्राचीनता का अवलोकन कीजिए ।
एक कृत्रिम जैविक वायरस का आक्रमण और समस्त विश्व आक्रांत !
सोचिए !
प्रकृति यदि असंतुलित और विक्षोभ की स्थिति में हो जाए , तो क्या होगा ?
प्रलय के गर्भ में भयानक विस्फोट !
बहुत कम समय है समस्त विश्व के पास ।
✍🏻 आलोक पाण्डेय