सहस्त्राब्दियों से संवहित महान विराट यह सभ्यता अतीत के ध्वंसावशेषों एवं विघटन के क्रूर संतापों को तटस्थता के साथ देख रही है। यद्यपि प्रकृति में कोई भी विस्फोटक स्थिति परिलक्षित नहीं हो रही है , प्रत्येक संध्या सूर्य अपनी अमिट ताम्र लालिमा फैलाये उदय और अस्त हो रहा है। प्रकृति जीवों के विविध संतापों एवं अपने असंख्य परिकरों के क्षय का मूल्य चुका लेना चाहती है। विघटन एवं पलायन की विभीषिका से आहत संस्कृतियों के कारुणिक भावों का पूरा गणित कर लेना चाहती है। संसारिक रंगमंचों पर भिन्न-भिन्न कलाओं में रंग बदलने में माहिर मानव आज सुसुप्त एवं सहमा सा क्यों है ?
है...कोई उत्तर........!
वस्तुत: विश्व के कोने कोने में जीवों की आहें, करुण पुकार, असह्य वेदना भरी चीत्कार एवं पृथ्वी के मर्मांतक अन्त:स्थल में उन्मादियों द्वारा प्रतिक्षण की जाने वाली भयंकर चोटों में सन्निहित है। सन्निहित है प्रकृति के साथ क्रूरता भरी भयानक लूट के हर उस कुकर्म में ...!
आज अचानक क्या हो गया ...
विश्व धरातल पर सम्पूर्ण विश्व को कितने बार विध्वंसित कर देने की क्षमता रखने वाले तथाकथित महाशक्तिशाली देश दुबके हुए से क्यों हैं ! आखिर औकात में कैसे आ गये !
उस काल को नमस्कार है !
यद्यपि आक्रांताओं द्वारा आच्छादित, सम्पूर्ण विश्व को आहत कर देने वाली यह #चायनीज_वायरस मानव निर्मित एक प्रयोग है। प्रकृति के विरुद्ध होने का परिणाम क्या होता है , समस्त विश्व के सामने परिलक्षित है। सम्पूर्ण विश्व LOCKDOWN की स्थिति में है। प्रकृति को हम संजोए होते तो आज हम इस प्रकार असहाय हो घरों में बन्द नहीं होते ,,, प्रकृति समस्त विष कणिकाओं को अब तक त्वरित शमन कर गयी होती ! आर्थिक महाशक्ति बनने की होड़ में न जाने कितने देशों की अर्थव्यवस्थाएं दम तोड़ देंगी। लोग अनायास भूखों मरने लगेंगे , जितना की यह #CHINESE_VIRUS नहीं मार पायेगा।
चीन में कम्यूनिस्टों का शासन यह चाहता था कि विश्व में तानाशाह के रूप में ख्यापित होने का एकमात्र विकल्प छद्म जैविक युद्ध (BIOLOGICAL WAR) ही है।
परिणामत: इस दुष्ट कुकर्मी कुटिल देश नें अपने लैब में वर्षों से कई कृत्रिम जैविक वायरसों का विनिर्माण, प्रयोग एवं परीक्षण का सूत्रपात करता रहा ।
इसका एक ही कुटिलाकांक्षा था कि समस्त विश्व किसी तरह मेरे अधीन रहे , तानाशाह के रूप में हम ख्यापित हो सकें।
इसका एक ही लक्ष्य है , असंख्य समृद्ध मानवों की तड़पती निरीह लाशों पर महाशक्ति बनना ! विश्व की अर्थव्यवस्था को खोखला कर अपने नियंत्रण में लेना ।
आज इसके कुकर्मों के कारण ही सम्पूर्ण मानवता एवं विश्व की अर्थव्यवस्था LOCKDOWN की स्थिति में है।
स्पेन को 3500 करोड़ डॉलर का चिकित्सकीय उत्पाद देना यह एक ज्वलंत उदाहरण है। आगे भी यही प्रयोग और भयानक रूप में होने वाला है।
पर भारत !
चीर संस्कृतियों की विशालता का दृढ़ स्तम्भ !
वर्षों से संवहित महान सभ्यता का जीवंत स्वरुप !
प्रत्येक बयारों को सह लेगा । इसकी विलक्षण संस्कृतियां विषमय अणु-परमाणु के असंख्य अदृश्य कणों एवं अदृश्य वायरसों को दग्ध कर मटियामेट करने की अद्भुत क्षमता रखती है। इसके कण कण में शंकर हैं। कोई भी संक्रमित #Second_Particle
के आक्रमण का कोई औकात ही नहीं है।
पर रुकिये ...!
अपने धरातल को झांकिए । क्या आप अध्यात्मिक, भौतिक, दार्शनिक एवं व्यवहारिक धरातल पर प्रकृति को विशुद्ध संतुलित दृढ़ एवं सशक्त रख पाए हैं ।
आपने पश्चिम की चकाचौंध में अपने प्राकृतिक संसाधनों को बड़ी निर्ममता के साथ दोहन करके खोखला कर दिया है ।
पृथ्वी...पानी... प्रकाश...
पवन... आकाश...!
क्या सुरक्षित रखा है आपने ?
नहीं...न...!
मैं आपको निराशा के निकृष्ट गर्त में नहीं धकेलना चाहता !
डंके की चोट पर सचेत अवश्य करना चाहता हूं ,
अपने धरातल को पखारिए ...
विशुद्धता को प्रकटित कर प्राणीमात्र को अभय दीजिए।
भक्ष्य-अभक्ष्य पर विचार करें।
जरा सोचिए !
क्या आपकी इतनी क्षमता नहीं रही की एक मानव निर्मित विषाणु से टकरा सके !
कहां गए वो ज्ञान-विज्ञान के संधान !
उत्तिष्ठ भारत !
प्रकृति की ओर लौटो ,
पुरातन काल का आह्वान करो !
आपको LOCKDOWN नहीं होना पड़ेगा।
ब्रह्माण्ड का कोई भी वायरस आपको स्पर्श तक नहीं कर पायेगा । विश्वास न हो तो अपने ज्ञान को पुष्ट कीजिए , प्राचीनता का अवलोकन कीजिए ।
एक कृत्रिम जैविक वायरस का आक्रमण और समस्त विश्व आक्रांत !
सोचिए !
प्रकृति यदि असंतुलित और विक्षोभ की स्थिति में हो जाए , तो क्या होगा ?
प्रलय के गर्भ में भयानक विस्फोट !
बहुत कम समय है समस्त विश्व के पास ।
✍🏻 आलोक पाण्डेय
है...कोई उत्तर........!
वस्तुत: विश्व के कोने कोने में जीवों की आहें, करुण पुकार, असह्य वेदना भरी चीत्कार एवं पृथ्वी के मर्मांतक अन्त:स्थल में उन्मादियों द्वारा प्रतिक्षण की जाने वाली भयंकर चोटों में सन्निहित है। सन्निहित है प्रकृति के साथ क्रूरता भरी भयानक लूट के हर उस कुकर्म में ...!
आज अचानक क्या हो गया ...
विश्व धरातल पर सम्पूर्ण विश्व को कितने बार विध्वंसित कर देने की क्षमता रखने वाले तथाकथित महाशक्तिशाली देश दुबके हुए से क्यों हैं ! आखिर औकात में कैसे आ गये !
उस काल को नमस्कार है !
यद्यपि आक्रांताओं द्वारा आच्छादित, सम्पूर्ण विश्व को आहत कर देने वाली यह #चायनीज_वायरस मानव निर्मित एक प्रयोग है। प्रकृति के विरुद्ध होने का परिणाम क्या होता है , समस्त विश्व के सामने परिलक्षित है। सम्पूर्ण विश्व LOCKDOWN की स्थिति में है। प्रकृति को हम संजोए होते तो आज हम इस प्रकार असहाय हो घरों में बन्द नहीं होते ,,, प्रकृति समस्त विष कणिकाओं को अब तक त्वरित शमन कर गयी होती ! आर्थिक महाशक्ति बनने की होड़ में न जाने कितने देशों की अर्थव्यवस्थाएं दम तोड़ देंगी। लोग अनायास भूखों मरने लगेंगे , जितना की यह #CHINESE_VIRUS नहीं मार पायेगा।
चीन में कम्यूनिस्टों का शासन यह चाहता था कि विश्व में तानाशाह के रूप में ख्यापित होने का एकमात्र विकल्प छद्म जैविक युद्ध (BIOLOGICAL WAR) ही है।
परिणामत: इस दुष्ट कुकर्मी कुटिल देश नें अपने लैब में वर्षों से कई कृत्रिम जैविक वायरसों का विनिर्माण, प्रयोग एवं परीक्षण का सूत्रपात करता रहा ।
इसका एक ही कुटिलाकांक्षा था कि समस्त विश्व किसी तरह मेरे अधीन रहे , तानाशाह के रूप में हम ख्यापित हो सकें।
इसका एक ही लक्ष्य है , असंख्य समृद्ध मानवों की तड़पती निरीह लाशों पर महाशक्ति बनना ! विश्व की अर्थव्यवस्था को खोखला कर अपने नियंत्रण में लेना ।
आज इसके कुकर्मों के कारण ही सम्पूर्ण मानवता एवं विश्व की अर्थव्यवस्था LOCKDOWN की स्थिति में है।
स्पेन को 3500 करोड़ डॉलर का चिकित्सकीय उत्पाद देना यह एक ज्वलंत उदाहरण है। आगे भी यही प्रयोग और भयानक रूप में होने वाला है।
पर भारत !
चीर संस्कृतियों की विशालता का दृढ़ स्तम्भ !
वर्षों से संवहित महान सभ्यता का जीवंत स्वरुप !
प्रत्येक बयारों को सह लेगा । इसकी विलक्षण संस्कृतियां विषमय अणु-परमाणु के असंख्य अदृश्य कणों एवं अदृश्य वायरसों को दग्ध कर मटियामेट करने की अद्भुत क्षमता रखती है। इसके कण कण में शंकर हैं। कोई भी संक्रमित #Second_Particle
के आक्रमण का कोई औकात ही नहीं है।
पर रुकिये ...!
अपने धरातल को झांकिए । क्या आप अध्यात्मिक, भौतिक, दार्शनिक एवं व्यवहारिक धरातल पर प्रकृति को विशुद्ध संतुलित दृढ़ एवं सशक्त रख पाए हैं ।
आपने पश्चिम की चकाचौंध में अपने प्राकृतिक संसाधनों को बड़ी निर्ममता के साथ दोहन करके खोखला कर दिया है ।
पृथ्वी...पानी... प्रकाश...
पवन... आकाश...!
क्या सुरक्षित रखा है आपने ?
नहीं...न...!
मैं आपको निराशा के निकृष्ट गर्त में नहीं धकेलना चाहता !
डंके की चोट पर सचेत अवश्य करना चाहता हूं ,
अपने धरातल को पखारिए ...
विशुद्धता को प्रकटित कर प्राणीमात्र को अभय दीजिए।
भक्ष्य-अभक्ष्य पर विचार करें।
जरा सोचिए !
क्या आपकी इतनी क्षमता नहीं रही की एक मानव निर्मित विषाणु से टकरा सके !
कहां गए वो ज्ञान-विज्ञान के संधान !
उत्तिष्ठ भारत !
प्रकृति की ओर लौटो ,
पुरातन काल का आह्वान करो !
आपको LOCKDOWN नहीं होना पड़ेगा।
ब्रह्माण्ड का कोई भी वायरस आपको स्पर्श तक नहीं कर पायेगा । विश्वास न हो तो अपने ज्ञान को पुष्ट कीजिए , प्राचीनता का अवलोकन कीजिए ।
एक कृत्रिम जैविक वायरस का आक्रमण और समस्त विश्व आक्रांत !
सोचिए !
प्रकृति यदि असंतुलित और विक्षोभ की स्थिति में हो जाए , तो क्या होगा ?
प्रलय के गर्भ में भयानक विस्फोट !
बहुत कम समय है समस्त विश्व के पास ।
✍🏻 आलोक पाण्डेय