हिन्दी ! तू फिर भी हिन्दी है ।
हिंदी ! तू फिर भी हिंदी है।
अनन्त क्षितिज के नवविहान में , सौंदर्यगर्वित असंख्य तरंगी है ;
हिन्दी ! तू फिर भी हिन्दी है।
तेरी आदर्श के साथ हो रहा, व्यवहार क्रूर बेढंगी है ;
हिन्दी तू फिर भी हिन्दी है।
नील-निलय के नक्षत्रलोक में,
गोमुख से गंगासागर;
नभोमण्डल में धारणीतल में ,
चीर स्मृतियां अन्तर-निरन्तर !
नवल तरुपत्ते कुसुम-किसलय ,
असीम आत्म आनन्दी है ;
हिन्दी ! तू फिर भी हिन्दी है।
मानस सागर के तट पर ,
नवजलद के बूंद मनोहर ,
श्रुति सींचित धारा से अभिषेक,
मधुबन के हिय सरस संदेश !
भव्य संस्कृति के मूल रहस्य , अभिसिंचित करती कालिंदी है ;
हिन्दी तू फिर भी हिन्दी है।
दिशाओं के सर्वत्र मधुर गान,
दिवस का समुज्ज्वल उत्थान,
नाना वाद्यों की मधुर स्वर ,
प्राणसंपोषिका सर्वत्र प्रखर !
उभयश्रुति के स्वर्ण कुंडलों की दृष्टि, नित्य दीर्घ उत्कंठी है ।
हिन्दी तू फिर भी हिन्दी है।
विधाता की कल्याणी सृष्टि,
सजल संसृति भूतल पर,
श्रृंगार सकल विस्तृत भूखंड के,
सरस समर्पण कलित् विभा पर !
मृदुल उन्मुक्त सौरभ संयुक्त,
सत्पुष्पों की मलय सुगंधी है ;
हिंदी! तू फिर भी हिन्दी है।
सुंदरियों के श्रुतिआनन की,
प्रेम रसिक मन भवन की,
वीरों के शौर्य सघन छोर ,
रे तपी ! ध्यान में घोर कठोर !
महार्णव पर्वत के स्तम्भ सार ,
मही-व्योम अरण्य का आधार ।
दूर्दिन के नाशक संताप,
अनन्त पुण्यों के प्रबल प्रताप ।
स्थिति विश्रांति प्रलय समाहित ब्रह्मांड केंद्र तरंगी है ;
हिन्दी ! तू फिर भी हिन्दी है।
मृदुल स्वर की लोल-लहरियां ,
संतापों को धोती ,
धीरे-धीरे प्रिय विरहाकुल ,
निज निकुंज में रोती !
अभिशप्त संतप्त आर्त्त स्वरों से , विभाजित संत्रासी सी सिंधी है ;
हिन्दी ! तू फिर भी हिन्दी है।
क्षीणकंठ है विकल तन,
व्यथित प्राण विशुद्ध मन,
उत्पीड़न की निरंकुश धार नग्न ;
हाय ! लुप्त संस्कृति होती भग्न ।
हास्य में प्रतिपल भ्रांति अशांति,
हुआ जा रहा आघात नंगी है ;
हिन्दी ! तू फिर भी हिन्दी है।
मानस पटल पर गुंजरित है,
आक्रांत लहर की घातें ;
वीरता की प्रतिबिंब दिखाती,
शाश्वत विस्मृत सी बातें !
वीरों के शाश्वत शौर्य प्रतीक ,
वीरांगनाओं की माथे की बिंदी है ;
हिन्दी! तू फिर भी हिन्दी है।
तेरी आदर्श के साथ हो रहा, व्यवहार क्रूर बेढंगी है ;
हिन्दी तू फिर भी हिन्दी है।
हिन्दी! तू फिर भी हिन्दी है।
✍🏻 आलोक पाण्डेय
अश्विन कृष्ण पितृपक्ष इंदिरा एकादशी । संवत् -२०७७ ।
वाराणसी भारतभूमि।