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रविवार, 8 सितंबर 2019

सदा बढ़ो तुम !


सदा बढ़ो तुम !
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जीवन पथ पर बढ़ते जाओ
 सदा बढ़ो ऊंचे उठो तुम ,
क्षमा दया तप त्याग धैर्य से
बनो दृढ़ निश्चयी, स्वत्व गढ़ो तुम !
हिमालय सी अटल उत्साह लिए
सीखो कहीं भी अडिग होना,
बन हिमगिरि की गंगा सा निर्मल
न विचल होना न निरंतरता खोना !
शुद्ध-विशुद्ध स्वरूप लिए
हो जीवन में जीवंत प्रवाह,
सुख-दुख किनारों में प्रतिक्षण,
पंथि! सुस्थिर सतत् बढ़े जा राह !
तु योद्धा प्रवीर पुण्य धरा के
 दृढ़ विराट कूट दग्ध-ज्वाल हो,
शत्रुहंता , दीनबन्धु ज्ञानी-विज्ञानी
मही-व्योम संचरित शौर्य सनातन, शक्ति-पुंज लिए विशाल हो !
धर्मयुद्ध में तूम्हें पुनः आज, देना होगा भारी मोल ,
वीरों की इस विशुद्ध परंपरा का,
क्या कोई कर पाया तोल ?
तुम पुण्यपथि हो धर्मधरा के
सुकर्मों की पताका लहराते जाना,
यदि राष्ट्र डूबे यदि धर्म डूबे तो,
बन्धु ! अरि-मस्तक धरणी पर चढ़ाते जाना ।
तुम तो हो हे प्रिय , वसुधा के प्रहरी,
जीयो प्राण गंवाकर ;
परमात्म स्वप्रकाश समेटे तूझमें
,
भूधर-पर्वत-सागर !

✍🏻 आलोक पाण्डेय
         (वाराणसी,भारतभूमि)

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