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शनिवार, 8 मई 2021

स्वर्गारोहिणी पर्वत शिखर (जय बद्री विशाल) से सतोपंथ स्वर्गारोहण की मनोरम यात्रा

 

Swargarohini uttrakhand

जय बद्री विशाल संपूर्ण विश्व लोक में सबसे सर्वश्रेष्ठ स्थान है और भारत में सबसे सर्वश्रेष्ठ स्थान है!

श्री बद्री धाम जहां पर स्वयं नारायण हर पल हर घड़ी विराजमान रहते हैं संपूर्ण सृष्टि में श्री नारायण का प्रिय स्थान और प्राणी को मोक्ष पाने का एकमात्र स्थान श्री बद्री धाम और यहीं से एक रास्ता जाता है जहां से प्राणी शरीर के सहित स्वर्ग जा सकता है

जिसकी यात्रा सब यात्राओं से सर्वश्रेष्ठ है और यह स्थान है स्वर्गारोहिणी यानी कि स्वर्ग जाने का दुनिया में एक मात्र स्थान स्वर्गारोहिणी जहां से धर्मराज युधिष्ठिर शरीर के सहित स्वर्ग गए तथा यह वही स्थान है जहां पर युधिष्ठिर को लेने के लिए पुष्पक विमान आया था!

यहीं पर है दुनिया का सबसे पवित्र और सबसे बड़ा तीर्थ सतोपंथ सरोवर जहां पर स्वयं त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश एकादशी के दिन इस पवित्र सरोवर में स्नान आदि करके तपस्या करते हैं!यह वह तपस्थली है जिसे प्राप्त करने के लिए बड़े-बड़े संत मुनि जन लालायित रहते हैं!

आइए अब स्वर्गारोहिनी की यात्रा शुरू करते हैं! जो कि हर प्राणी के लिए अति दुर्लभ है जिनके दर्शन मात्र से ही यात्री धन्य हो जाता है!

जब द्वापर युग में महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात पांडवों को अपना राजपाट हासिल हुआ था उसके कई वर्षों बाद पांडवों ने स्वर्गारोहिणी की यात्रा आरंभ की थी!

बद्रीनाथ से आगे चलते हुए मां सरस्वती के साक्षात दर्शन होते हैं अन्य जगह मां सरस्वती अदृश्य रूप में रहती है जो भी प्राणी मां सरस्वती में स्नान ध्यान पूजा आदि करते हैं उनकी कुल में कभी कोई अज्ञानी नहीं होता! सरस्वती नदी का प्रभाव इतना तीव्र है की यात्री देखकर एक बार डर ही जाता है

जब पांच पांडव द्रोपती सहित स्वर्ग गए थे तो यहीं से गए थे नदी के प्रभाव को देखकर द्रौपदी डर गई थी अतः नदी को पार नहीं कर पाई यह देख कर भीम ने एक विशाल शिला को उठाकर दोनों पर्वतों के मध्य रख दिया अतः द्रौपदी उस शीला के ऊपर से होकर पार हो गई तब से इस शीला को भीम शिला के नाम से जाना जाता है!

थोड़ा आगे जाकर एक कुलदेवी का मंदिर आता है शास्त्रों के अनुसार द्रोपति इसी मंदिर तक ही जा सकी और इसी स्थान पर अपना शरीर त्याग दिया था और तब से यहां पर देवी के रूप में पूजी जाती हैं

श्री बद्री धाम में करोड़ों यात्री आते हैं परंतु सतोपंथ स्वर्गारोहिणी की यात्रा चंद प्राणी ही कर सकते हैं या फिर जिस पर भगवान की अति कृपा होती है वही प्राणी स्वर्गारोहिणी की यात्रा कर सकता है आइए इस यात्रा के बारे में पढ़ते हैं की विद्वान क्या कहते हैं|

सतोपंथ यानी सत्य पथ अर्थात जहां सत्य ही सत्य है और जीवन का सत्य क्या है जीवन का सत्य भगवान नारायण को प्राप्त करना ही जीवन का अंतिम सत्य है!

स्वर्गारोहिनी पर्वत स्वर्ग की सीढ़ी के रूप में दिखाई पड़ता है श्री बद्रीनाथ धाम से सतोपंथ की दूरी 25, 26 किलोमीटर की दूरी पर है यह पैदल मार्ग माणा गांव की ओर जाता है! 2 किलोमीटर बाद एक शिला पर नाग नागिन का जोड़ा है और यहीं से प्राकृतिक नजारे शुरू हो जाते हैं|

3 किलोमीटर की दूरी पर माता मूर्ति का मंदिर है माता मूर्ति धर्म की पत्नी है और भगवान श्री नर नारायण की माता है यहां पर वर्ष में एक बार बहुत बड़ा मेला लगता है भगवान श्री नर नारायण बावन द्वादशी के दिन यहां अपनी माता के पास आते हैं और भोजन पाते हैं यात्री यहां पर पूजा अर्चना करके मां का आशीर्वाद लेकर आगे चल पड़ते हैं!

प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेकर हम पहुंच गए हैं आनंदवन! इसके पश्चात एक जगह ग्लेशियर आता है थोड़ी चढ़ाई के बाद एक मैदान सा आ जाता है यहां पर यात्री विश्राम करते हैं सामने अलकनंदा के पार 6 फुटी पगडंडी है जो वसुधारा तक जाती है यह वसुधारा साधारण नहीं है स्कंद पुराण में इस झरने की विशेषता लिखी हुई है कि जो प्राणी पाखंडी एवं पापी हो उस पर इस धारा का जल नहीं गिरता!

आगे चलकर विशाल ऊंचाई वाले पर्वत पर अनगिनत भोजपत्र के वृक्ष मिलेंगे पूर्व काल में ऋषि मुनि इन भोज पत्रों की छाल निकालकर उन पर पुराण लिखते थे मां लक्ष्मी जी प्रकृति का रूप बनकर यहां पर वास करती हैं जब पांच पांडव स्वर्ग की ओर अपनी यात्रा कर रहे थे तो नकुल लक्ष्मी बन तक ही जा सका और यहां पर नकुल ने अपना शरीर त्याग दिया था!

यहां का मौसम कभी भी बिगड़ सकता है और शाम को तो अक्सर बारिश होती है यात्री स्वर्गारोहिणी का पहला विश्राम लक्ष्मी बन मैं ही करते हैं आसपास छोटी-छोटी गुफाएं हैं दूसरे दिन सुबह-सुबह यात्री ओम नमो नारायण का जाप करते हुए अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं कुछ यात्री यहीं से वापस लौट जाते हैं यहां पर जो यात्री नंगे पांव यात्रा करता है उसे एक कदम से एक अश्वमेघ का फल प्राप्त होता है!

आगे चलकर सामने एक पहाड़ दिखाई देता है इस पहाड़ से दो घाटिआ नजर आती हैं इसमें से 1 घाटी का रास्ता अलकापुरी को जाता है और दूसरी घाटी का रास्ता सतोपंथ स्वर्गारोहिणी की ओर जाता है और अलकापुरी से ही मां अलकनंदा का उद्गम स्थल है ग्लेशियर के बीच से मां अलकनंदा निकलती है वास्तव में मां अलकनंदा स्वर्गारोहिणी के पास विष्णु कुंड से निकलकर अलकापुरी में दिखाई देती है इसलिए इसको विष्णुपदई गंगा कहते हैं!

आगे चलकर सामने ही एक दीवार नुमा पहाड़ दिखाई देता है इस दीवार नुमा पहाड़ पर हजारों झरने दिखाई देते हैं इन्हें देख कर यात्री अपनी थकान भूल जाता है प्रभु की अपार माया के दर्शन करता है ऐसा मनमोहक दृश्य शायद ही संसार में कहीं देखने को मिले इन दृश्यों को देखकर यात्री गदगद हो जाता है अतः इस स्थान को सहस्त्रधारा के नाम से जाना जाता है, पांच पांडवों में से सहदेव इस स्थान तक ही आ सके थे और सहस्त्रधारा के पास अपना शरीर त्याग दिया था!

इस यात्रा में यात्रियों को कुछ कुत्ते जरूर मिलते हैं परंतु ये कुत्ते ऐसे होते हैं जो यात्रियों के साथ चलते हैं और यात्रियों को सतोपंथ तक छोड़ कर आते हैं बड़े आश्चर्य की बात है पांच पांडव स्वर्ग कई तो उन्हें भी रास्ते में एक स्वान मिला था यह स्वान साधारण नहीं था कल की युधिष्ठिर की परीक्षा लेने के लिए स्वान के भेष में स्वयं धर्मराज थे स्वर्गारोहिणी की यात्रा में युधिष्ठिर के चार भाई और पत्नी ने उनका साथ छोड़ दिया था

परंतु स्वान उनके साथ साथ चलता रहा कोई भी यात्री यदि स्वर्गारोहिणी जाता है तो उनको आज भी यह स्वान मिल जाते हैं और आपको स्वर्गारोहिणी तक छोड़ कर आते हैं इनको देख कर लगता है यह सदियों से रीत चली आई है कि जो भी सत्य पथ के मार्ग पर चले तो धर्म उनके साथ आज भी है सहस्त्रधारा को पार करके एक तलवार नुमा पहाड़ी पर चलना पड़ता है और दोनों और खाई है बिल्कुल पहाड़ की नोक पर चलना कठिन है!

यह जगह नीलकंठ पर्वत के पीछे है यानी ठीक श्री केदारनाथ के पीछे का भाग है सहस्त्रधारा से 3 किलोमीटर चलने के बाद आता है चक्रतीर्थ बहुत बड़ा मैदान गोलाकार का सुखी मैदान की तरह दिखाई देता है इतनी ऊंचाई में हिमालय पर इतना बड़ा मैदान देखकर आश्चर्य होता है पांच पांडव जब स्वर्गारोहिणी की ओर जा रहे थे तो वीर अर्जुन चक्रतीर्थ तक ही आ सके थे और यहीं पर उन्होंने शरीर का त्याग दिया था

इससे आगे भीम युधिष्ठिर और स्वान के रूप में धर्मराज गए थे चक्रतीर्थ में कुछ गुफाएं हैं अतः यात्री अपनी यात्रा का दूसरा रात्रि विश्राम इन्हीं गुफाओं में करते हैं कुछ यात्री आगे भी चले जाते हैं और दूसरे दिन आगे की यात्रा शुरू करते हैं चारों ओर बर्फीली चोटियां है यहां पर बादल भी नीचे रह जाते हैं यात्री बादलों के ऊपर पहुंच जाते हैं चक्रतीर्थ से यह चढ़ाई काफी कठिन है ऑक्सीजन की भी कमी हो जाती है यह ऊंचाई लगभग 14000 फुट की ऊंचाई पर है इस चोटी से सामने सतोपंथ टॉप दिखाई देता है और कुछ हिस्सा स्वर्गारोहिणी का इस चोटी के बाद रास्ता और कठिन हो जाता है!

यह तीर्थ है ही ऐसा जिसके दर्शन से प्राणी की आंखों से भक्ति रस की गंगा बहने लगती है चक्रतीर्थ से सतोपंथ तक 3 किलोमीटर का रास्ता यात्री की कठिन परीक्षा ले लेता है यह रास्ता साधारण नहीं है बल्कि यात्रियों को ग्लेशियर के ऊपर चलना पड़ता है नीचे पानी बहता है यहां रास्ता नहीं बल्कि यात्री को एक स्थान पर खड़े होकर कामने रास्ते का चिन्ह देखना पड़ता है यह चिन्ह एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर रखकर बनाया जाता है इस प्रकार यात्री इन चिन्हों को देखकर रास्ते का अनुमान लगाकर आगे चलते हैं

एक चोटी पर पहुंच कर सामने अलकापुरी का टॉप दिखाई पड़ता है यह कुबेर का मुकुट है यही वह जगह है जहां से रावण अपने भाई कुबेर से पुष्पक विमान जीतकर लेकर गया था यहीं पर कुबेर के भंडार हैं यहीं से तिरुपति बालाजी ने पद्मावती से शादी करने के लिए कुबेर से कर्जा लिया था 3 किलोमीटर की यात्रा करने के पश्चात सामने ही त्रिकोण रूप में बहुत ही सुंदर एक तालाब दिखाई देता है

जब यात्री सतोपंथ के दर्शन करता है तो ऐसा लगता है जैसे कंकाल को खजाना मिल गया हो जस्सी तपस्वी के सामने मूर्ति मई सिद्धि स्वयं आकर खड़ी हो गई हो इतना स्वच्छ कांच के सामान हरे रंग का जल यात्री का ह्रदय सतोपंथ के दर्शन करके भक्ति ओतप्रोत हो जाता है यह स्थान दुनिया में एक ऐसा स्थान है कि प्राणी यहां पर आने के बाद संसार में जाने की इच्छा नहीं रखता इस सरोवर का जल इतना पवित्र है

कि यदि इसमें कोई गलती से तिनका भी डाल दें तो वहां पर मौजूद पक्षी उस तिनके को उठाकर बाहर फेंक देते हैं यहां के पक्षी भी सात्विक भाव के ही मिलेंगे यह पक्षी और कहीं नहीं मिलते स्कंद पुराण में लिखा है एकादशी के दिन यहां साक्षात ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों देव सतोपंथ सरोवर में स्नान आदि करके तपस्या करने आते हैं सतोपंथ के दर्शन पूजा स्तुति करने से क्या फल प्राप्त होता है

यह स्वयं ब्रह्माजी भी नहीं कह सकते तो फिर हम क्या कहें यात्री सिर्फ यही तक ही जाते हैं और पांचों पांडवों में से भीम सतोपंथ तक ही जा सके और यही सतोपंथ में अपना शरीर त्याग दिया यात्री भी सतोपंथ में स्नान करके तपस्या करते हैं कोई कोई तो अपनी ठाकुर जी को स्नान कराकर पूजा अर्चना करते हैं सतोपंथ में एक मोनी महाराज रहते हैं जो सतोपंथ में 12 महीने रह कर साधना करते हैं

यह किसी से बात नहीं करते बस मौन रहते हैं किसी से कुछ लेना देना भी पसंद नहीं करते यहां पर रहने वाले साधु संत कभी कच्चा आलू खाकर और कभी आटे को पानी में मिलाकर खा लेते हैं यह जड़ी बूटी का इस्तेमाल भी करते हैं जिससे भूख नहीं लगती बस यह लोग प्रभु चरणों में लीन रहते हैं यह भी एक नशा है

ऊंचे हिमालय में जहां भगवान के सिवा और कोई नहीं रहता आगे फिर ग्लेशियर के ऊपर से जाना है यहां पर विस्फोट जैसी आवाज भी आती हैं यह आवाजें ग्लेशियर के टूटने की होती हैं दूर चोटी के बाद पहले चंद्रकुंड आता है यहां पर चंद्रमा है 88000 वर्ष तक अष्टक्षरी मंत्र से जाप करके श्री नारायण से नक्षत्रों का राजा होने का वर मांगा था इस कुंड काजल चंद्रमा की तरह ही घटता बढ़ता रहता है

पूर्णमासी के दिन यह चंद्रकुंड पूर्ण जल से भरा होता है और अमावस्या पर चंद्र कुंड पूरा खाली रहता है चंद्र कुंड के बाद सूर्य कुंड आता है यहां पर यात्री पूजा अर्चना करते हैं जो भी प्राणी यहां पर पूजा करते हैं और सूर्य नारायण का जाप करते हैं प्राणी सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है सूर्य कुंड के बाद पहाड़ की नोक पर चलना पड़ता है दोनों तरफ खाई होती है यहां पर संभल कर चलना पड़ता है!

किसी धार के बाद यात्री पहुंचते हैं स्वर्गारोहिणी के नीचे ग्लेशियर तक यहां पहुंचकर प्राणी धन्य हो जाता है इसी के ऊपर स्वर्गारोहिणी है यहीं पर तीन सीढ़ियां दिखाई देती है कहते हैं कुल 7 सीढ़ियां हैं परंतु बादलों के कारण तीन सीढ़ियां ही दिखाई देती है यही वह स्थान है

जहां पर धर्मराज युधिष्ठिर और स्वान के रूप में स्वयं धर्मराज गए थे जब युधिष्ठिर को लेने के लिए विमान आया तो देवताओं ने युधिष्ठिर को आदर सहित विमान में बैठने को कहा तो युधिष्ठिर बोले रास्ते में मेरे भाई एक-एक करके मेरा साथ छोड़ ते गए परंतु यही एक स्वान है

जिसने मेरा साथ यहां तक दिया इसका मतलब मेरे ज्यादा पुण्य इस स्वान ने की है इसलिए यदि यह स्वान स्वर्ग जाएगा तो मैं भी जाऊंगा अन्यथा मैं नहीं जाऊंगा यह सुनकर धर्मराज ने स्वान का रूप छोड़कर युधिष्ठिर को दर्शन दिए और कहा वाकई मैं तुम धर्मराज हो भक्तजनों यही वह स्थान है जहां से प्राणी शरीर सहित स्वर्ग जा सकता है|

स्वर्गारोहिनी की यात्रा यहीं पर समाप्त होती है

आशा करते हैं आपको यह लेख बहुत पसंद आया होगा जय श्री नारायण


हर हर महादेव 🙏

जय हिन्दूराष्ट्र  जय बद्रीविशाल

हर हर महादेव