Translate

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

भारतमाता ग्राम्यवन्यविहारिणी

उत्ताल तरंगाघात प्रलयघन गर्जन जलधि क्षण भर,
धीर-वीर सौंदर्य गर्वित, खड़ा अविचल हिमगिरि , धीर-धर ,
शान्त सरोवर विशुद्ध धवल सिमटी हैं वर्तुल मृदुल लहर ,
क्षिति-जल-अनिल-अनल में , नभ में, अविरल सस्नेह गूंज रही स्वर ।
जगतितल में, व्योममण्डल में,
शुचि शाश्वत भूति विस्तारिणी ,
वंदन ! भारतमाता ग्राम्यवन्यविहारिणी ।


                                   ✍🏻 आलोक पाण्डेय

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें