Translate

गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

करना होगा पथ प्रशस्त !

जीवन के सनातन मूल्यों की हो रही दूर्दशा को रोकने का अवबोधन कराती एक  दूरद्रष्टा व्यक्तित्व की कविता -


करना होगा पथ प्रशस्त !


फटे मही-व्योम अंगार मिले ,

कंपित सागर व्यथित तूफान भले ,

सर्वत्र झंझावातों के विषबेल खिले;

शाश्वत जीवन मूल्यों के तार हिले !

हो कंटक राहें चाहे , बेहद क्रूर अशांत व्यस्त ;

दुर्निवार जीवन का, करना होगा पथ प्रशस्त !

घनघोर अंधेरा हो जाए ,

प्रलय की आंधी फहराए ,

मेघ ज्वाल बरसा जाए ,

दिशाएं आपस में टकराए !

लेकर ऋषियों के दिव्य तेज प्रखर ,

सींचित, युगों से जो व्यक्त-अव्यक्त ;

दुर्निवार जीवन का, करना होगा पथ प्रशस्त !

विविध षड्यंत्रों को देख-देख,

संस्कृति संकुचित शीघ्र निरेख ,

सभ्यता अकंपित भी भाग्य लेख,

त्वरित खींचने होंगे दृढ़-विभत्स आरेख !

आक्रांताओं के कुटिल नीति से देख ! 

राष्ट्र , आज कैसा विभक्त ;

दुर्निवार जीवन का, करना होगा पथ प्रशस्त ! 

दग्ध वन-उपवन सब प्राणी दग्ध दिशाएं ,

दग्ध निर्झर-कूप-तडाग-तटिनी धाराएं ,

दग्ध प्राणवायु ज्योत , विविध स्रोत कलाएं ,

दग्ध सौम्य प्रकृति भव्य छटाएं !

सबकुछ असंतुलित देवभूमि में , 

हाय धरा हो चली संतप्त ;

दुर्निवार जीवन का, करना होगा पथ प्रशस्त !


✍🏻 आलोक पाण्डेय

              (वाराणसी,भारतभूमि)



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें